केंद्र सरकार ने अक्षय ऊर्जा के एकीकरण हेतु तकनीकी समिति की रिपोर्ट जारी की
18 अप्रैल 2016 को केंद्रीय बिजली, कोयला और नवीन एवं नवीकरणनीय ऊर्जा राज्य मंत्री (आईसी) पीयुष गोयल ने नई दिल्ली में बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा के एकीकरण, संतुलन की जरूरत, विचलन निपटान तंत्र (डीएसएम) और संबंधित मामलों पर तकनीकी समिति की रिपोर्ट जारी की.
उन्होनें भारत में सहायक सेवा संचालन की भी शुरुआत की.
• भारत ने 175 गीगावाट की महात्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया है .
• अक्षय उर्जा के इस प्रकार की उच्च पैठ और अक्षय ऊर्जा में हितधारकों की चिंताओं को दूर करने के क्रम में विद्युत मंत्रालय, केंद्रीय बिजली नियामक आयोग (CERC), केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (CEA), अक्षय ऊर्जा समृद्ध राज्य जैसे गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, पीजीसीआईएल जैसी विद्युत सुविधाएं, पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (पोस्को), एनटीपीसी, राजकीय विद्युत कंपनियां और प्राइवेट विद्युत कंपनियां एवं भारतीय मौसमविज्ञान विभाग (आईएमडी), राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (एनआईडब्ल्यूई), राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान( एनआईएसई), जीआईजेड, अर्नेस्ट एंड यंग आदि के सदस्यों वाली एक उच्च स्तरीय तकनीकी समिति का गठन किया गया .
• समिति ने व्यापक विचार– विमर्श किया और कई कार्यों जैसे परंपरागत उत्पादन में लचीलापन लाना, आवृत्ति नियंत्रण, उत्पादन का भंडारण, सहायक सेवाएं, पूर्वानुमान, समय–सारणी बनाना, विचलन निपटान तंत्र, संतुलन की आवश्यकता, डाटा टेलिमेट्री और संचार, अक्षय ऊर्जा प्रबंधन केंद्र (आरईएमसी), पारेषण प्रणाली आवर्धन और मजबूत बनाने की अनुशंसा के साथ– साथ अक्षय ऊर्जा उत्पादन मोर्चे पर कुछ अनुपालन कार्रवाईयों की भी सिफारिश की.
• समिति ने सुरक्षित और विश्वसनीय तरीके से देश में बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा के एकीकरण की सुविधा हेतु 15 सूत्री कार्ययोजना की सिफारिश की.
• कुछ कार्यों को सीईआरसी, राज्य ऊर्जा नियामक आयोग (एसईआरसी), एनआईडब्ल्यूई और अन्य हितधारकों के सक्रिए सहयोग से पूरा किया जाएगा.
• अंतर–राजकीय निपटान और असंतुलन को दूर करने के लिए नियामक रूपरेखा को 5 राज्यों में लागू किया जा चुका है.
• पूर्वानुमान, समय–सारणी बनाने और अक्षय ऊर्जा उत्पादकों के लिए असंतुलन निपटान हेतु नियामक रुपरेखा हेतु मॉडल नियम नवंबर 2015 में प्रकाशित किए गए थे और नियमों का मसौदा 6 राज्यों ने प्रस्तुत कर दिया है.
• अन्य राज्य नियम तैयार करने की प्रक्रिया में हैं. अंतर– राज्यीय स्तर पर भंडारों के लिए नियामक रूपरेखा अक्टूबर 2015 में जारी किए गए थे.
• विद्युत मंत्रालय, एमएनआरई, जीआईजेड, पोस्को और राज्य अक्षय ऊर्जा प्रबंधन केंद्रों के कार्यान्वयन हेतु डीपीआर बनाने के लिए मिल कर काम कर रहे हैं. दक्षिणी राज्यों के लिए डीपीआर और सदर्न रिजनल लोड डिस्पैच सेंटर का काम अंतिम चरण में है और संयुक्त एनआईटी जल्द ही जारी किया जाएगा.
• योजनाकारों के रूप में सीईए अक्षय ऊर्जा के लिए तकनीकी मानकों और संरक्षण जरूरतों के बारे में निर्देश देंगे. स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर्स (एसएलडीसी) खास कर अक्षय ऊर्जा समृद्ध राज्यों में क्षमता निर्माण पर भी फोकस किया जाएगा.
• रिपोर्ट में माइक्रो– ग्रिड्स, मांग प्रतिक्रिया, प्रोज्यूमर्स, बिजली भंडारण, प्लग–इन हाइब्रिड बिजली वाहन आदि जैसी नई प्रौद्योगिकियों के बारे में भी बात की गई है.
• सभी अनुसंशाओं का उद्देश्य अक्षय ऊर्जा के बड़े पैमाने पर एकीकरण के बावजूद ग्रिड को सुरक्षित और विश्वसनीय बनाना है.
अनुषंगी / सहायक सेवाएं
• एक बिजली के ग्रिड में बुनियादी सेवा बिजली बनाना, बिजली की आपूर्ति करना और उत्पादक के पास से उपभोक्ता तक बिजली पहुंचाना होता है.
• सुरक्षित और विश्वसनीय ग्रिड संचालन के लिए कुछ सिस्टम समर्थित सेवाएं जैसे आवृत्ति और वोल्टेज नियंत्रण की जरूरत पड़ती है.
• ये समर्थन सेवाएं अनुषंगी/ सहायक सेवाएं कहलाती हैं और मूल रूप से सिस्टम ऑपरेटर द्वारा खरीदी और सेवा में लगाई जाती हैं.
• सीमा–शुल्क नीति में संशोधन को भी अधिसूचित कर दिया गया है, जिसमें सहायक सेवाओँ के कार्यान्वयन का प्रावधान है.
• सहायक सेवा संचालनों के कार्यान्वयन की नियामक रूपरेखा को सीईआरसी द्वारा अधिसूचित किया गया है. पॉस्को द्वारा संचालित नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (एनएलडीसी) को सहायक सेवाओँ के कार्यान्वयन हेतु नोडल एजेंसी बनाया गया है.
• देश में यह पहली बार लागू किया जा रहा है और ग्रिड में बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा उत्पादन को शामिल किए जाने पर भी ग्रिड के बेहतर प्रबंधन में मदद करेगा.
• समिति द्वारा किए जा रहे इस पहल से अक्षय ऊर्जा के बड़े पैमाने पर एकीकरण के बावजूद ग्रिड संचालन को न सिर्फ सुचारू और सुरक्षित बनाने में मदद मिलेगी बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल भी है और यह हमारे हरित एवं स्वच्छ पर्यावरण की प्रतिबद्धता को भी पूरा करता है.
• यह कार्बन फुट प्रिंट को कम करेगा और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रति हमारी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में भी मदद करेगा.





