आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों पर सार्वजनिक जैव–सुरक्षित जानकारी प्रदान करें : केंद्रीय सूचना आयोग
1 अप्रैल 2016 को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने जीईएसी को आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) पर गैर– गोपनीय जैव– सुरक्षा जानकारी को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है.
इस निर्देश का उद्देश्य नियामक अनुमोदन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना और जीएम सरसों प्रजाति– DMH11 समेत पाइपलाइन में सभी जीएमओ पर इसे लागू करना है.
निर्देशों के अनुसार जीएमओ को सर्वोच्च नियामक निकाय, आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी), को सभी प्रासंगिक आंकड़ों को 30 अप्रैल 2016 तक सार्वजनिक क्षेत्र (पब्लिक डोमन) में लाना होगा.
बौद्धिक संपदा आंकड़ा को सार्वजनिक करने से छूट दी गई थी.
• दिल्ली विश्वविद्यालय का सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) पिछले कुछ वर्षों से सरसों की जीएम प्रजाति– DMH11 को विकसित करने में लगा है.
• वर्ष 2014 और 2015 में फसल विकसित करने वालों ने क्षेत्र परीक्षण करने के लिए जीईएसी से अनुमति लेने के लिए दो अलग– अलग डोजियर प्रस्तुत किए.
• जीएम सरसों के नियामक मंजूरी का विरोध करते हुए अलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर ने सूचना के अधिकार 2005 के तहत अनुरोध किया और जैव–सुरक्षा डोजियर की प्रति की मांग अधिकारियों से की.
• याचिकाकर्ताओं की दलील है कि इस प्रकार बनाए गए जीएम बीजों की स्थिरता सरसो की मौजूद प्रजातियों की तुलना में अच्छी नहीं हैं और DMH11 को बढ़ावा देने के लिए बीज विकसित करने वाले और जैवप्रौद्योगिकी नियामकों ने सांठगांठ की है.
• लेकिन अधिकारियों ने सीजीएमसीपी के वाणिज्यिक गोपनीयता के उल्लंघन का हवाला देते हुए ऐसी जानकारी मुहैया कराने से इनकार कर दिया.
• इसी बात पर न्याय के लिए याचिकाकर्ताओं ने केंद्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया था.
• जीएमओ को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं– वैसे पौधे, पशु या सूक्ष्म जीव जिनमें आनुवंशिक सामग्री (डीएनए) में इस प्रकार बदलाव किया गया हो जो संभोग या प्राकृतिक पुनर्संयोजन द्वारा प्राकृतिक तरीके से नहीं हो सकता, को आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव कहते हैं.
• जीएम भोजन उत्पादित किए जाते हैं और इनका विपणन होता है क्योंकि इनमें उत्पादक या उपभोक्ता के लिए इन भोजनों से कुछ कथित लाभ मिलता है.
• यह किसी उत्पाद से कम लागत पर अधिक मुनाफा कमाना ( स्थायित्व या पौष्टिकटता) या दोनों ही दे सकता है.
• हालांकि पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, लागत– लाभ विश्लेषण, प्रौद्योगिकी बाधाएं, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एकाधिकार आदि समेत कई आधारों पर जीएमओ की काफी आलोचना की गई है.
• हाइब्रिड प्रजातियां आम तौर पर अधिक उत्पादन के लिए जानी जाती हैं लेकिन किसानों को हर वर्ष बीज कंपनियों के पास ताजे बीज खरीदने के लिए जाना अनिवार्य बना देती हैं.
इसे दिल्ली विश्वविद्यालय के आनुवंशिकीविद् दीपक पेंटल ने राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड और जैवप्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से विकसित किया है.
• इसमें सॉयल बैक्टेरियम (मृदा जीवाणु) से लिए गए जटिल जीनों का प्रयोग किया गया है जो बीज विकसित करने वालों को सरसों के हाइब्रिड प्रजातियों को विकसित करना आसान बना देता है.यह आम तौर पर स्व परागण पौधों के माध्यम से.
• इस नई प्रजाति के मौजूदा प्रजातियों की तुलना में उपज में 25 फीसदी की बढ़ोतरी करने की संभावना है.
• पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अधीन यह भारत की सर्वोच्च नियामक संस्था है.
• पर्यावरण की दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों और आनुवंशिक सामग्री के टुकड़ों (recombinants) के बड़े पैमाने पर उपयोग संबंधी गतिविधियों की मंजूरी के मामलों पर गौर करता है.
• यह क्षेत्र परीक्षण प्रयोगों समेत पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से इंजीनियर किए गए जीवों और उत्पादों को जारी करने संबंधी प्रस्तावों के मंजूरी के लिए भी जिम्मेदार होता है.
• फिलहाल जीएम कॉटन एक मात्र जीएम फसल है जो किसानों के खेतों में वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध है.
• वर्ष 2002 में भारत में आने के बाद से इसकी मात्रा इतनी बढ़ी की जीम– फसल उत्पादक की सूची में भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील और अर्जेंटीना के बाद विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश बन गया.
• जुलाई 2014 में भारत ने जीएम चावल, सरसों, कपास, चना और बैंगन के क्षेत्र परीक्षण को हरी झंडी दे दी है.





