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•    पीरियोडिक टेबल में 4 नए नाम शामिल कर लिए गए हैं. 
•    निहोनियम, मॉस्कोवियम, टेनेसाइन और ओगेनेशन नाम के इन तत्वों की एटोमिक संख्या आवर्त सारणी में क्रमश: 113, 115, 117 और 118 होगी.
•    रसायनशास्त्र संबंधी शोधों के अंतराष्ट्रीय संगठन इंटरनेश्नल यूनियन ऑफ प्योर एंड एप्लाइड कैमिस्ट्री यानि आईयूपीएसी ने इन नामों को अस्थायी रूप से सारणी में शामिल करते हुए इन्हें सार्वजनिक समीक्षा के लिए पेश किया है.
•    इससे पहले आईयूपीएसी ने दिसंबर 2015 में इन चार नए नामों की खोज के बारे में बताया था. 
•    उसके बाद आईयूपीएसी की अकार्बनिक रसायनशास्त्र शाखा ने इसकी समीक्षा कर इन्हें स्वीकार्यता के लिए प्रस्तावित किया. 
•    हालांकि अभी यह नाम सारणी में अस्थायी रूप से ही शामिल किए गए हैं लेकिन 8 नवंबर 2016 तक की सार्वजनिक समीक्षा की अवधि के बाद आईयूपीएसी काउंसिल की ओर से पुष्टि मिलने पर इन्हें स्थयी तौर पर शामिल कर लिया जाएगा.
•    तत्व संख्या 113 यानि निहोनियम (एनएच) की खोज का श्रेय जापान के रिकेन रिसर्च इंस्टिट्यूट को दिया गया है. 
•    यह आवर्त सारणी का पहला ऐसा तत्व है जिसकी खोज किसी एशियाई देश में हुई है.
•    अन्य तीन तत्वों की खोज का श्रेय यूरोप, अमेरिका और रूस के साझे सहयोग से बनाये गए परमाणु शोध संस्थान और यूएस लॉरेंस लिवरमोर एंड ओक रिज नेश्नल लैबोरेट्रीज को दिया गया है.

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नासा के वैज्ञानिकों ने विषैले सल्फर डाईऑक्साइड उत्सर्जन के मानव–निर्मित 39 स्रोतों का पता लगाया

नासा के वैत्रानिकों ने विषैले सल्फर डाईऑक्साइड उत्सर्जन के 39 गैर–रिपोर्ट किए गए और प्रमुख मानव–निर्मित स्रोतों का पता लगाया है. इन्होंने विषैले उत्सर्जनों के स्रोतों का पता लगाने के लिए नई उपग्रह–आधारित पद्धति का प्रयोग किया.
इन इलाकों में ज्ञात स्रोतों से रिपोर्ट किए गए उत्सर्जन की मात्रा कुछ मामलों में उपग्रह–आधारित अनुमानों की तुलना में दो से तीन गुना तक कम हैं.
•    गैर–रिपोर्ट किए गए और अंडररिपोर्टेड स्रोत सल्फर डाईऑक्साइड के मानव–निर्मित कुल उत्सर्जन का करीब 12 फीसदी है. 
•    शोध टीम ने यह भी बताया कि सुप्त ज्वालामुखी जैसे 75 प्राकृतिक स्रोत भी पूरे वर्ष धीरे-धीरे इस जहरीली गैस का उत्सर्जन करते रहते हैं. 
•    मानवनिर्मित स्रोतों जैसे तेल–संबंधित गतिविधियों और मध्यम–आकार के बिजली संयंत्रों द्वारा कम मात्रा में SO2 सांद्रता के उत्सर्जन का भी पता चला है.
हवा द्वारा तितर–बितर और हल्का कर दिए जाने वाले SO2 का अधिक सटीकता से पता लगाने के लिए एक नए कंप्यूटर प्रोग्राम का प्रयोग शोध टीम द्वारा किया गया था.

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गूगल और टाटा की संयुक्त पहल "इंटरनेट साथी" का पश्चिम बंगाल में शुभारम्भ

इंटरनेट सर्च इंजन गूगल और टाटा ट्रस्ट ने 8 जून 2016 को संयुक्त रूप से पहल करके "इंटरनेट साथी" का कोलकाता, पश्चिम बंगाल में शुभारम्भ किया.
इस पहल का उद्देश्य भारत के ग्रामीण क्षेत्रों जैसे पुरुलिया आदि में डिजिटल लैंगिक अंतर को कम करना है, जहां लड़कियों को इंटरनेट का उपयोग करने और दूसरों को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा.
•    इंटरनेट साथी पांच राज्यों में सफलतापूर्वक शुरू किया गया. जुलाई 2015 में, यह पश्चिम बंगाल सहित चार राज्यों में शुरू हुआ.
•    इंटरनेट साथी का उद्देश्य इंटरनेट के लाभ पर बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान करके  महिलाओं और उनके समुदायों को सशक्त बनाना है.
•    कार्यक्रम से ग्रामीण भारत में महिलाओं के जीवन और उनके समुदायों में सुधार आ रहा है.
•    यह ग्रामीण भारत में महिलाओं के इंटरनेट प्रशिक्षण के विभिन्न उपयोगों पर केंद्रित है. जो प्रशिक्षण करने के बाद अपने स्वयं के और पड़ोसी गांवों में बड़े  ग्रामीण समुदाय को प्रशिक्षण दे सकेंगी.
•    साथी के प्रशिक्षण में गूगल मदद करता है और प्रशिक्षण सामग्री के साथ-साथ डेटा सक्षम उपकरणों प्रदान करता है.
•    जमीनी स्तर पर प्रशिक्षण स्वयं सहायता समूह, महासंघों और स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के सदस्यों जो टाटा ट्रस्ट द्वारा समर्थित हैं, के माध्यम से दिया जाता है.  
•    पिछले दस महीनों में यह पहल भारत के पांच राज्यों अर्थात् राजस्थान, गुजरात, झारखंड, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के गांवों में सक्रिय रूप से कार्यरत है.

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खगोलभौतिकविद् ने अंतरिक्ष में कनारिस आइंस्टीन रिंग की खोज की

खगोलभौतिकविदों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने नई प्रकाशीय आइंस्टीन रिंग जिसे कनारिस आइंस्टीन रिंग कहा जा रहा है, की खोज की है. आइंस्टीन रिंग आकाशगंगा की विकृत छवि स्रोत है जो पृथ्वी से बहुत दूर है.
•    खोज के परिणाम रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के अंतरराष्ट्रीय जरनल मंथली नोटिसेस में 16 मई 2016 को प्रकाशित हुए थे. 
•    खोजी टीम के सदस्यों में इंस्टीट्यूटो डी एस्ट्रोफिजिका डी कनारिस (आईएसी) और स्पेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ला लागुना (यूएलएल) से डॉक्टरेट की छात्रा मार्गेरिटा बेट्टिनेल्ली प्रमुख हैं. 
•    खोज किए गए ऑप्टिकल आइंस्टीन रिंग से दो पूर्ण रूप से पंक्तिबद्ध आकाशगंगा–सोर्स गैलेक्सी और लेंस गैलेक्सी का पता चलता है. 
•    सोर्स गैलेक्सी पृथ्वी से 10000 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर है और यह नीले रंग की आकाशगंगा की तरह दिखता है जिसमें युवा तारों की आबादी विकसित होती जान पड़ती है. ये युवा सितारे बहुत उच्च दर से बन रहे हैं. 
•    लेंस गैलेक्सी पृथ्वी से 6000 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर और अधिक विकसित हैं, हालांकि इसमें सितारों का बनना लगभग बंद हो चुका है और इसकी आबादी पुरानी है. 
•    वस्तु की पुष्टि स्पेक्ट्रोग्राफ ओसिरिस के साथ 10.4 एम ग्रैन टेलिस्कोपियो कनाराएस (जीटीएस) पर लेंस और सोर्स के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपिक रेडशिफ्ट्स प्राप्त करने के लिए किए गए अध्ययन से प्राप्त किया गया था.
•    चिली में सेर्रो टोलोलो वेधशाला में 4मी ब्लैंको टेलिस्कोप के डार्क एनर्जी कैमरा के माध्यम से लिए गए आंकड़ों की जांच के दौरान यह खोज हुई. 
•    यह घटना अल्बर्ट आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत की भविष्यवाणी थी. 
एक आइंस्टीन रिंग बहुत दूर स्थित आकाशगंगा की विकृत छवि है जिसे सोर्स कहते हैं. 
•    रिंग एक प्रकार का भ्रम है जो दो आकाशगंगाओं के संरेखण से संयोगवश बनता है. 
•    विरुपण इसके और पर्यवेक्षक के बीच पड़ने वाले एक विशाल आकाशगंगा, जिसे लेंस कहते हैं, की वजह से स्रोत से प्रकाश किरणों के झुकने की वजह से होता है. 
•    लेंस आकाशगंगा द्वारा उत्पादित मजबूत गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र अपने पड़ोस के अंतरिक्ष–समय की संरचना को खराब कर देता है और यह न सिर्फ द्रव्यमान वाली वस्तुओं को अपनी तरफ आकर्षित करता है बल्कि प्रकाश के मार्ग को भी झुका देता है. 
•    दो आकाशगंगाओं के संरेखण में होने वाला यह बदलाव और फलस्वरूप प्रकाश किरणों का झुकना आइंस्टीन रिंग के बनने का भ्रम पैदा करता है. 
•    आइंस्टीन रिंग का अध्ययन सोर्स गैलेक्सी की संरचना के साथ– साथ लेंस आकाशगंगा के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की संरचना और डार्क मैटर के बारे में प्रासंगिक जानकारी देता है.

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असम में शोधकर्ताओं ने धान की दो किस्मों रंजीत सब-1 एवं बहादुर सब-1 का विकास किया

असम कृषि अनुसंधान विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं ने धान की दो किस्मों रंजीत सब-1 एवं बहादुर सब-1 का विकास किया. 
•    धान की इन किस्मों को राज्य की बराक वैली में बेहतर पैदावार प्राप्त करने हेतु विकसित किया गया.
•    असम के विभिन्न भागों में, विशेषकर बराक वैली, आकस्मिक बाढ़ आने से धान की फसल की बर्बादी होती है.
•    यह दोनों किस्में जलमग्न क्षेत्रों में खरीफ सीजन के दौरान उत्तम हैं.
•    यह किस्में रंजीत एवं बहादुर का उन्नत रूप है. इन दोनों किस्मों को राज्य के किसान वर्षों से प्रयोग कर रहे हैं.
•    इस दौरान एक अन्य किस्म का भी विकास किया गया जिससे आकस्मिक बाढ़ के समय पैदावार को जारी रखा जा सके.
•    असम या आसाम उत्तर पूर्वी भारत में एक राज्य है। असम अन्य उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों से घिरा हुआ है। 
•    असम भारत का एक सीमांत राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा है।

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इंटरनेशनल एयरोस्पेस प्रदर्शनी में विश्व का पहला थ्री-डी प्रिंटेड विमान थॉर प्रदर्शित

एयरबस द्वारा बर्लिन में आयोजित इंटरनेशनल एयरोस्पेस प्रदर्शनी में 1 जून 2016 को विश्व का पहला थ्री-डी प्रिंटेड विमान थॉर प्रस्तुत किया गया.
•    थॉर नामक यह ड्रोन हाई-टेक वस्तुओं को असल जीवन में उपयोग किये जाने के प्रयोग का एक हिस्सा है. यह किसी सफेद विमान जैसा दिखता है. 
•    यह केवल तीन भागों द्वारा तैयार विश्व का पहला थ्री-डी प्रिंटेड विमान है.
•    इसमें कोई खिड़की नहीं है, इसका वजन 21 किलोग्राम (46 पाउंड) एवं इसकी लम्बाई चार मीटर (13 फीट) से कम है. यह हल्का, तीव्र एवं सस्ता विकल्प है.
•    केवल इलेक्ट्रिक वस्तुओं के अतिरिक्त सभी भाग थ्री-डी प्रिंट से तैयार किये गये हैं.
•    इसकी प्रारंभिक उड़ान नवम्बर 2015 को जर्मनी के शहर हैम्बर्ग में की गयी थी.
•    एयरबस एवं बोइंग में भी थ्री-डी प्रिंट का प्रयोग होता है. इनमें ए350 एवं बी787 विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
•    आधुनिक थ्री-डी प्रिंटर 40 सेंटीमीटर (15 इंच) तक के टुकड़े प्रिंट कर सकते हैं.
•    इससे लागत तो कम होती ही है साथ ही पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता तथा हल्के विमानों में इंधन की खपत भी कम होती है.
•    यह एक बहुउद्देशीय अविष्कार हो सकता है क्योंकि अगले 20 वर्षों में विमान सेवाओं के दोगुना होने का अनुमान लगाया गया है.

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वैज्ञानिकों ने सौर ऊर्जा को तरल ईंधन में बदलने वाली 'बायोनिक पत्ती का आविष्कार किया

शोधकर्ताओं ने सौर ऊर्जा को तरल ईंधन में परिवर्तित करने के लिए 'बायोनिक पत्ती' का इस्तेमाल किया है। 
•    हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों ने सौर ऊर्जा के सबसे अक्षय भण्डारण के लिए इसे तरल ईंधन में परिवर्तित करने का एक रास्ता खोज लिया है। 
•    राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के शोधकर्ताओं ने सौर ऊर्जा को तरल ईंधन (हाइड्रोजन) में परिवर्तित करने के क्रम में फोटोवोल्टिक कोशिकाओं का इस्तेमाल किया है. 
•    उन्होंने पानी को ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में विभाजित करने के क्रम में सूरज की रोशनी का उपयोग वाली एक 'बायोनिक पत्ती' बनाई है। 
•    बैक्टेरिया राल्स्तोनिया यूत्रोफा, इस काम को अंजाम देता है और कार्बन डाइऑक्साइड के साथ-साथ हाइड्रोजन का रूपांतरण सीधे उपयोग में आने वाले तरल ईधन, इसोप्रोपनोल में कर देता है। 
•    फिलहाल बायोनिक पत्ती के सहारे यह दक्षता अभी एक प्रतिशत की है जैसा कि प्रकृति में प्रकाश संश्लेषण से सौर ऊर्जा बायोमास में बदलती है. 
•    बायोनिक पत्ती के साथ, वैज्ञानिकों द्वारा यह दक्षता 5% तक पहुँचाने के प्रयास हो रहे हैं। शोधकर्ताओं का यह कदम ऊर्जा से भरपूर दुनिया बनाने की दिशा में मील का पत्थर है.
•    शोधकर्ता इस तकनीक को सहज और सुविधाजनक बनाने के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय में ऊर्जा के एक  प्रोफ़ेसर डेनियल नोसरा कड़ी मेहनत कर रहे हैं। 
•    उनके द्वारा किए गए कृत्रिम पत्ती के प्रयोग में प्रयुक्त सामग्री और उत्प्रेरक आसानी से उपलब्ध हैं. उनके द्वारा इस्तेमाल में लाये गए उत्प्रेरक जीवाणु के साथ अच्छी तरह से अनुकूलित कर गए हैं.

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भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग के सामरिक अनुसंधान और नवाचार क्षमताओं को बढ़ाने के लिए बिराक जो की विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक पीएसयू संस्थान है, ने बागवानी अभिनव ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
•    इसके तहत सारा ध्यान फसल उत्पादकता में सुधार लाने के लिए संयंत्र जैव प्रौद्योगिकी के आधुनिक उपकरणों को विकसित करने और तैनात करने में केंद्रित किया जाएगा ।
•    बागवानी अभिनव ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रेलियाई सरकार और देश की अग्रणी अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से काम करता है, 
•    भारत में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्रक के विकास के लिए शीर्ष प्राधिकरण है। 
•    इसकी स्‍थापना देश में विभिन्‍न जैव प्रौद्योगिकीय कार्यक्रमों और क्रियाकलापों की योजना बनाने संवर्धन करने और समन्‍वयन करने के लिए की गई है। 
•    यह राष्‍ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं, विश्‍वविद्यालयों और विभिन्‍न क्षेत्रकों में अनुसंधान बुनियादों, जो जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित है, के लिए सहायता अनुदान की सहायता प्रदान करने के लिए नोडल एजेंसी है।

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अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका एजेंसी और विद्युत मंत्रालय, भारत ने मिलकर मुख्यधारा नेट शून्य ऊर्जा भवन के लिए भारत के पहले एकीकृत वेब पोर्टल का शुभारंभ किया।
•    विद्युत मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका एजेंसी (यूएसएड) भारत के पहले एकीकृत वेब पोर्टल की 27 मई 2016 को शुरूआत की ।
•    यह पोर्टल (www.nzeb.in) नेट शून्य ऊर्जा भवन को भारत में (एनजेडईबी) को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है ।
•    यह श्री प्रदीप कुमार पुजारी, सचिव, विद्युत मंत्रालय और अम्बेस्डर श्री जोनाथन ऐडलेटन, यूएसएआईड मिशन निदेशक भारत द्वारा शुरू की है।
•    यह अपनी तरह का पहला है जो नेट शून्य ऊर्जा बिल्डिंग के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करेंगे जिसमे जितनी बिजली उपयोग होगी उतनी ही उत्पन्न होगी ।
•    यह पोर्टल कुशल प्रकाश और उपकरण, अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के एकीकरण, और सबसे अच्छा अभ्यास डिजाइन रणनीतियों के उपयोग के माध्यम से लगभग शून्य ऊर्जा का दर्जा प्राप्त करने में मदद करेगा ।
•    यह नीति निर्माताओं, डेवलपर्स, आर्किटेक्ट, इंजीनियर, स्थिरता सलाहकार, और शिक्षा के लिए भी जानकारी प्रदान करेगा।

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भारतीय वायुसेना ने ब्रह्मोस मिसाइल का सफल परीक्षण किया

भारतीय वायुसेना द्वारा 27 मई 2016 को सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल का वेस्टर्न फायरिंग रेंज में सफल परीक्षण किया गया. 
•    इसके पहले नबंवर  2015 में सेना ने पोखरण मोबाइल लॉन्चर से इसका टेस्ट किया था.
•    शॉर्ट रेंज वाली यह मिसाइल 290 किलोमीटर तक मार कर सकती है. 
•    यह मिसाइल डीआरडीओ एवं रशियन टेक्नोलॉजी के सहयोग से बनाई गई है. 
•    ब्रह्मोस मिसाइल की स्पीड 2.8 मैक है. यह विश्व की सबसे अधिक तीव्र गति की मिसाइलों में शामिल है.
•    ब्रह्मोस मिसाइल जमीन और समुद्र से आसमान में दुश्मन पर हमला कर सकती है.
•    वर्ष 2007 में ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम को भारतीय सेना के सैन्य बेड़े में शामिल किया गया.
•    ब्रह्मोस मिसाइल अपने साथ 300 किलोग्राम तक विस्फोटक ले जा सकती है.
•    भारतीय सेना में ब्रम्होस की एक ख़ास जगह है . इस मिसाइल को डॉ. अब्दुल कलाम से जोड़कर भी देखा जाता है जिन्हें भारत का मिसाइल मैन कहा जाता है .

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