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प्रसिद्घ कन्नड़ लेखक डी जवारे गौड़ा का निधन

लोकप्रिय कन्नड़ लेखक डी जवारे गौड़ा का 30 मई 2016 को मैसूर में एक निजी अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने के बाद निधन हो गया । 
•    वह कन्नड़ के प्रसिद्द कवि के.वी. पुट्टप्पा के एक शिष्य थे ।
•    गौड़ा 1969 से 1975 तक मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्यरत थे ।
•    उन्हें 2001 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था 
•    उन्हें 1998 में पंपा प्रिशाठी और 2003 में गुरु अवार्ड से सम्मानित किया।
•    साहित्य में उनके योगदान और कन्नड़ के कारण उन्हें  कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक रत्न (2008) और नदोजा शीर्षक (2003) से सम्मानित किया ।
•    उन्हें कुछ कामों में लक्ष्मिशाना जैमिनी भरत (1957), कनाकदासरा नालाचरित्रे (1959), अन्दवाना कब्बिगारा काव्या (1965), आदि भी शामिल है ।
•    कन्नड साहित्य का इतिहास लगभग डेढ़ हजार वर्ष पुराना है।
•    कुछ साहित्यिक कृतियाँ जो ९वीं शताब्दी में रची गयीं थीं, अब भी सुरक्षित हैं।
•    कन्नड साहित्य को मुख्यतः तीन साहित्यिक कालों में बांटा जाता है- प्राचीन काल (450–1200 CE), मध्यकाल (1200–1700 CE) तथा आधुनिक काल (1700 से अब तक)।
•    कन्नड साहित्य की एक विशेष बात यह है कि इसमें जैन, वीरशैव और वैष्णव तीनों सम्रदायों ने साहित्य रचना की जिससे मध्यकाल में तीन स्पष्ट धाराएँ दिखतीं हैं।
  

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